Tuesday, August 1, 2017

अध्याय-10, श्लोक-27

उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्धवम्‌ ।
एरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम्‌ ॥ २७ ॥
घोड़ों में मुझे उच्चःश्रवा जानो, जो अमृत के लिए समुद्र मंथन के समय उत्पन्न हुआ था। गजराजों में मैं ऐरावत हूँ तथा मनुष्यों में राजा हूँ।
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मुझे उच्चःश्रवा जानो  
समस्त घोड़ों के मध्य में 
निकला था जो अमृत हेतु
समुद्र मंथन के उपलक्ष्य में ।

हाथियों के मध्य में मैं 
समुद्र से उत्पन्न ऐरावत हूँ 
मनुष्यों के बीच में मैं 
नरपति प्रजा पालक हूँ ।।

अध्याय-10, श्लोक-26

अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः ।
गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः ॥ २६ ॥
मैं समस्त वृक्षों में अस्वत्थ वृक्ष हूँ तथा देवर्षियों में नारद हूँ। मैं गंधर्वों में चित्ररथ हूँ और सिद्ध पुरुषों में कपिल मुनि हूँ।
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वृक्षों के बीच में मैं
वृक्ष हूँ पीपल का
देव ऋषियों में मैं
भक्त शिरोमणि नारद।

सभी गंधर्वों में हूँ
मैं चित्ररथ गंधर्व
सिद्ध पुरुषों में कपिल
सांख्ययोग विशारद ।।