Monday, January 4, 2016

अध्याय-1,श्लोक-15

पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः ।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशंख भीमकर्मा वृकोदरः ॥ १५ ॥
भगवान् कृष्ण ने अपना पाञ्चजन्य शंख बजाया, अर्जुन ने देवदत्त शंख तथा अतिभोजी एवं अतिमानवीय कार्य करनेवाले भीम ने पौंड पौण्ड्र नामक भयंकर शंख बजाया.
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"इन्द्रियों के स्वामी हृषिकेश ने
अपना पाञ्चजन्य शंख बजाया.
उनके ही संग-संग धनंजय ने भी
देवदत्त की ध्वनि को यहाँ गुंजाया.

वृकोदर कहलाते हैं जो भीम सेन
काम भी होते जिनके अतिमानवीय.
बजाया उन्होंने भी पौण्ड्र शंख अपना
जो करे कृष्ण वो सबके लिए करनीय."

अध्याय-1,श्लोक-14

ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ ।
माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शंखौ प्रदध्मतुः ॥ १४ ॥
दूसरी ओर से श्वेत घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले विशाल रथ पर आसीन कृष्ण तथा अर्जुन ने अपने-अपने दिव्य शंख बजाये.
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"दूसरी ओर श्वेत अश्वों से सज्जित
विशाल रथ पर बैठे हैं स्वयं माधव .
बने हैं जिस रथ के सारथी वे आज
आसीन हैं उसपे उनके भक्त पाण्डव.

विपक्ष की शंख ध्वनि के पश्चात
इन्होने भी अपने-अपने शंख बजाए.
सुनकर इनके शंखों की ध्वनि को
संजय इन शंखों को दिव्य बताए."

अध्याय-1,श्लोक-13

ततः शंखाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः ।
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत्‌ ॥ १३॥
तत्पश्चात शंख, नगाड़े, बिगुल, तुरही तथा सींग एकसाथ बज उठे. वह समवेत स्वर अत्यंत कोलाहलपूर्ण था.
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"सुनकर सेनापति की शंख ध्वनि
हर ओर से अब ध्वनियाँ आने लगी
कहीं शंख, नगारे, बिगुल बजे तो
कहीं सींग और तुहरी बजने लगी.

हर कोई दे रहा था वाद्यों से साथ
सबकी ओर से होने लगी थी पहल.
इन सारे वाद्यों के समवेत स्वर
मिलकर बन गए थे एक कोलाहल."

अध्याय-1,श्लोक-12

तस्य सञ्जनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः ।
सिंहनादं विनद्योच्चैः शंख दध्मो प्रतापवान्‌ ॥ १२ ॥
तब कुरुवंश के वयोवृद्ध परम प्रतापी एवं वृद्ध पितामह ने सिंह-गर्जना की सी ध्वनि करने वाले अपने शंख को उच्च स्वर से बजाया, जिससे दुर्योधन को हर्ष हुआ.
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"जानकार दुर्योधन की मनोदशा
पितामह ने शंख अपना बजा दिया.
शंख की इस सिंह-नाद सी ध्वनि से
युद्ध है कर्त्तव्य उनका ये बता दिया.

सुनकर पितामह की शंख-ध्वनि
दुर्योधन के हर्ष की सीमा न रही.
परम प्रतापी कुरुश्रेष्ठ पितामह
हैं सिर्फ मेरे साथ और कहीं नही."

अध्याय-1,श्लोक-11

अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः ।
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि ॥ ११॥
अतएव सैन्यव्यूह में अपने-अपने मोर्चों पर खड़े रहकर आप सभी भीष्म पितामह को पूरी-पूरी सहायता दें.
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"करके महारथियों की प्रशंसा दुर्योधन
अब शेष योद्धाओं का उत्साह बढ़ा रहा.
उनकी भी महत्ता कम नही किसी से
बड़े ही कूटनीतिक ढंग से है बता रहा.

अपने-अपने मोर्चों पे ही रहे सब डटकर
किसी भी दिशा से शत्रु व्यूह तोड़ न पाए
इसतरह रखकर हर दिशा को सुरक्षित
भीष्म पितामह को आप सहायता पहुंचाए."