Friday, May 27, 2016

अध्याय-1,श्लोक-29

वेपथुश्च शरीरे में रोमहर्षश्च जायते ।
गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्वक्चैव परिदह्यते ॥ २९॥

मेरा सारा शरीर काँप रहा है, मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं, मेरा गाण्डीव धनुष मेरे हाथ से सरक रहा है और मेरी त्वचा जल रही है.
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"अपनों को देख सामने मोह से भरकर
कैसे हो रहे वीर योद्धा अर्जुन बेहाल.
प्रेम के अतिरक औ मोह के वशीभूत
अक्सर हो जाता है इंसान का ये हाल.


कह रहे कि सारा शरीर काँप रहा है
रोंगटे भी हो रहे मेरे देखो खड़े कैसे.
गाण्डीव मेरा सरक रहा है हाथों से
लग रहा त्वचा मेरी जल रही है जैसे."

अध्याय-1,श्लोक-28

दृष्टेवमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्‌ ।
सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति ॥ २८॥

अर्जुन ने कहा-हे कृष्ण ! इस प्रकार युद्ध की इच्छा रखने वाले अपने मित्रों तथा सम्बन्धियों को अपने समक्ष उपस्थित देखकर मेरे शरीर के अंग काँप रहे हैं और मेरा मुँह सूखा जा रहा है.
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"कांप रहे हैं मेरे शरीर के अंग सारे
और ये मुँह भी मेरा सूखा जा रहा.
अपने मन औ शरीर के परिवर्तन
अर्जुन कृष्ण के समक्ष है बता रहा.

बतलाया उसने भगवान् को कि अब
कैसी हो रही है उसकी मनःस्थिति.
युद्धभूमि में देख मित्रों-सम्बन्धियों को
उससे संभल नही रही ये परिस्थिति."

Tuesday, May 24, 2016

अध्याय-1,श्लोक-27

तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्‌ बन्धूनवस्थितान्‌ ।
कृपया परयाविष्टो विषीदत्रिदमब्रवीत्‌ ॥२७ ॥

जब कुन्तीपुत्र अर्जुन ने मित्रों तथा सम्बन्धियों की इन विभिन्न श्रेणियों को देखा तो वह करुणा से अभिभूत हो गया और इसप्रकार बोला.
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"जहाँ तक दृष्टि जा रही अर्जुन की
मित्रता दिखे या पारिवारिक रिश्ता
रिश्ते-नातों की ये विभिन्न श्रेणियाँ
उपजाने लगी कुन्तीपुत्र में कोमलता.

अभिभूत हुए बिना रह न सके अर्जुन
सम्बन्धों को इसतरह विपक्ष में देख.
जब निकली उनके मुख से वाणी तो
उसमें भी था भावना का हीअतिरेक."

Wednesday, May 4, 2016

अध्याय-1,श्लोक-26

तत्रापश्यत्स्थितान्‌ पार्थः पितृनथ पितामहान्‌ ।
आचार्यान्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा ।
श्वशुरान्‌ सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि ॥ २६ ॥

अर्जुन ने वहाँ पर दोनों पक्षों की सेनाओं के मध्य में अपने चाचा-ताउओं, पितामहों, गुरुओं, मामाओं, भाइयों, पुत्रों, पौत्रों, ससुरों और शुभचिंतकों को भी देखा.
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"अब था अर्जुन दोनों पक्षों के मध्य
जहाँ से सारे योद्धा उसे दिख रहे थे,
देखा तब उसने सामने पितामहों को
संग में उनके चाचा ताऊ भी खड़े थे.

गुरु, मामा , भाई, पुत्र, पौत्र, ससुर
सबको ही उनसें अपने सामने पाया.
हर ओर ही दिखे सगे-सम्बन्धी उसे
जहाँ-जहाँ उसने नजर को दौड़ाया."