Monday, July 31, 2017

अध्याय-10, श्लोक-25

महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्‌ ।
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः ॥ २५ ॥
मैं महर्षियों में भृगु हूँ, वाणी में दिव्य ओंकार हूँ, समस्त यज्ञों में पवित्र नाम का कीर्तन (जप) तथा समस्त अचलों में हिमालय हूँ।
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महर्षि भृगु हूँ मैं जितने भी 
महर्षियों के हैं यहाँ प्रकार
वाणी के मध्य से हूँ आदि 
दिव्य,पवित्र,अक्षर ओंकार ।

जितने भी यज्ञों की है चर्चा
उनमें हूँ नाम जप यज्ञ विमल 
न चलनेवालों की श्रेणी में से 
मानो मुझे हिमालय अचल।।

अध्याय-10, श्लोक-24

पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम्‌ ।
सेनानीनामहं स्कन्दः सरसामस्मि सागरः ॥ २४ ॥
हे अर्जुन ! मुझे समस्त पुरोहितों में मुख्य पुरोहित बृहस्पति जानो। मैं ही समस्त सेनानायकों में कार्तिकेय हूँ और समस्त जलाशयों में समुद्र हूँ।
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हे पार्थ! पुरोहितों के बीच 
मैं ही हूँ मुख्य पुरोहित बृहस्पति 
सेनानायकों के मध्य शिव पुत्र 
कार्तिकेय,देवताओं का सेनापति।


यूँ तो मुझसे ही हैं सृष्टि के 
समस्त जल और उसके स्रोत 
फिर भी जलाशयों के बीच 
समुद्र हूँ सदा जल से ओतप्रोत।।

अध्याय-10, श्लोक-23

रुद्राणां शङ्‍करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम्‌ ।
वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम्‌ ॥ २३ ॥ 
मैं समस्त रुद्रों में शिव हूँ, यक्षों में तथा राक्षसों में सम्पत्ति का देवता (कुबेर) हूँ, वसुओं में अग्नि हूँ और समस्त पर्वतों में मेरु हूँ।
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रुद्रों की श्रेणी में मैं 
सदाशिव शंकर हूँ 
यक्षों राक्षसों के मध्य 
धन का स्वामी कुबेर हूँ ।

वसुओं के मध्य से 
अग्नि मुझे ही जानो 
समस्त पर्वतों के बीच 
मुझे मेरु पर्वत मानो।

अध्याय-10, श्लोक-22

वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः ।
इंद्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना ॥ २२ ॥
मैं वेदों में सामवेद हूँ, देवों में स्वर्ग का राजा इंद्र हूँ, इंद्रियों में मन हूँ तथा समस्त जीवों की जीवनी शक्ति हूँ।
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चारों वेदों के बीच चुनो
तो मैं उनमें सामवेद हूँ
राजाओं की श्रेणी में से
मैं स्वर्ग का राजा इंद्र हूँ।

सभी इंद्रियों के मध्य मैं
चंचल चलायमान मन हूँ
जीवों की जीवनी शक्ति
मैं हूँ बनाता उन्हें चेतन हूँ।।

Tuesday, July 11, 2017

अध्याय-10, श्लोक-21

आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान्‌ ।
मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी ॥ २१ ॥
मैं आदित्यों में विष्णु, प्रकाशों में तेजस्वी सूर्य, मरूतों में मरीचि तथा नक्षत्रों में चंद्रमा हूँ।
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बारह आदित्यों की श्रेणी में 
मैं विष्णु हूँ प्रधान आदित्य 
जितने भी ज्योतिपुँज जग में 
उन सबमें हूँ मैं तेजस्वी सूर्य।

मैं वायु का अधिष्ठाता मरीचि 
जितने भी है वायु प्रवाहमान
नक्षत्रों की टोली में हूँ मैं चंद्रमा 
सौम्य, शीतल, प्रकाशवान।।

अध्याय-10, श्लोक-20

अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः ।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ॥ २० ॥
हे अर्जुन! मैं समस्त जीवों के हृदयों में स्थित परमात्मा हूँ। मैं ही समस्त जीवों का आदि, मध्य तथा अंत हूँ।
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हे अर्जुन! मैं समस्त प्राणियों के
हृदय में सदा ही स्थित रहता हूँ
परमात्मा रूप में रहकर भीतर
मैं ही हर जीव को चेतना देता हूँ।

मुझसे ही सबकी हुई है उत्पत्ति
मैं ही उनका भरण भी करता हूँ
मैं उनके जीवन का कारण और
मैं ही मृत्यु का कारण बनता हूँ।।

अध्याय-10, श्लोक-19

श्रीभगवानुवाच
हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतयः ।
प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे ॥ १९ ॥
श्रीभगवान ने कहा-हाँ, अब मैं तुमसे अपने मुख्य-मुख्य वैभवयुक्त रूपों का वर्णन करूँगा क्योंकि हे अर्जुन! मेरा ऐश्वर्य असीम है।
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हे कुरुश्रेष्ठ! मेरे तो ऐश्वर्य अनंत
सबको यहाँ कहा न जा सकता
इतना विस्तार मेरे व्यक्तित्व का
कि समय में वो समा न सकता।

भगवान ने कहा अर्जुन से कि
बता रहे हैं अब वे अपने वैभव
बताएँगे मुख्य-मुख्य ही क्योंकि
सबको बता पाना नहीं है संभव ।।