Friday, April 8, 2016

अध्याय-1,श्लोक-25

भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम्‌ ।
उवाच पार्थ पश्यैतान्‌ समवेतान्‌ कुरूनिति ॥२५ ॥

भीष्म, द्रोण तथा विश्व भर के अन्य समस्त राजाओं के सामने भगवान् ने कहा कि हे पार्थ ! यहाँ पर एकत्र सारे कुरुओं को देखो.
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"भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और भी
न जाने कितने योद्दा थे सामने खड़े.
विश्व के कोने-कोने से हो एकत्रित
प्रतीक्षा में थे कि कब पांडवों से लड़ें.

देखकर उन राजाओं को भगवन ने
भक्त को पार्थ कह संबोधित किया.
याद रहे उसे उसका संबध पृथा से
यह कह कुरुओं की ओर इंगित किया."

अध्याय-1,श्लोक-24

संजय उवाचः
एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत ।
सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम्‌ ॥ २४ ॥

संजय ने कहा - हे भरतवंशी ! अर्जुन द्वारा इस प्रकार संबोधित किये जाने पर भगवान् कृष्ण ने दोनों दलों के बीच में उस उत्तम रथ को लाकर खड़ा कर दिया.
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" जो आगे हुआ है अब युद्धभूमि में
धृतराष्ट्र को संजय सब सुना रहे हैं.
सुनकर अपने सखा की बातों को
क्या किया भगवन ने ये बता रहे हैं.

नींद और अज्ञान पर विजय पा चुके
गुडाकेश का यह संबोधन सुनकर.
समस्त इन्द्रियों के स्वामी हृषिकेश ने
खड़ा किया रथ सेनाओं के मध्य लाकर."

अध्याय-1,श्लोक-23

योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः ।
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः ॥ २३ ॥
मुझे उन लोगों को देखने दीजिये जो यहाँ पर धृतराष्ट्र के दुर्बुद्धि पुत्र (दुर्योधन) को प्रसन्न करने की इच्छा से लड़ने के लिए आये हुए हैं.
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"बताया पार्थ ने केशव को अब अपने
सेनाओं के मध्य में आने का कारण.
जिससे करने जा रहा था युद्ध अब वो
करना चाह रहा उनका भी आकलन.

देखना चाहे कि कौन-कौन हैं वे योद्धा
जो आये हैं विपक्ष से लड़ने के लिए.
दुर्बुद्धि दुर्योधन की प्रसन्नता हेतु आज
जिन्होंने अपने प्राण भी उसको दे दिए."

अध्याय-1,श्लोक-21,22

अर्जुन उवाच
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ।
यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान्‌ ॥ २१ ॥
कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे ॥ २२ ॥
अर्जुन ने कहा - हे अच्युत ! कृपा करके मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच ले चले जिससे मैं यहाँ उपस्थित युद्ध की अभिलाषा रखने वालों को और शस्त्रों की इस महान परीक्षा में, जिनसे मुझे संघर्ष करना है, उन्हें देख सकूँ.

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"लक्ष्मी रत रहे सेवा में जिनके वे प्रभु
कर रहे सेवक की सेवा सारथी बनके.
अर्जुन को भी है भान पद का उनके
तभी तो कर रहे प्रार्थना अच्युत कहके.

कहा हे अच्युत दोनों सेनाओं के बीच
कृपा करके आप मेरा यह रथ ले चले.
युद्ध की इच्छा से उपस्थित लोगों को
शस्त्र परीक्षा से पहले हम भी देख लें."



Tuesday, April 5, 2016

अध्याय-1,श्लोक-20

अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान्‌ कपिध्वजः ।
प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः।
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते ॥ २० ॥
उस समय हनुमान से अंकित ध्वजा लगे रथ पर आसीन पाण्डुपुत्र अर्जुन अपना धनुष उठा कर तीर चलाने के लिए उद्दत हुआ. हे राजन ! धृतराष्ट्र के पुत्रों को व्यूह में खड़ा देखकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से ये वचन कहे.

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"हनुमान से अंकित है ध्वजा
औ भगवान् है रथ पे उपस्थित.
सारे शुभ लक्षण करे संकेत ऐसे
जैसे विजय पार्थ है पूर्वनिश्चित.

हो विजय रथ पर आसीन अब
अर्जुन तीर चलाने को उद्दत हुए.
पर धृतराष्ट्र पुत्रों को देख समक्ष
अपने सखा कृष्ण से ये वचन कहे."

अध्याय-1,श्लोक-19

स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्‌ ।
नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन्‌ ॥ १९ ॥
इन विभिन्न शंखों की ध्वनि कोलाहलपूर्ण बन गई जो आकाश तथा पृथ्वी को शब्दायमान करती हुई धृतराष्ट्र के पुत्रों के हृदयों को विदीर्ण करने लगी.
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"गूँज उठा आकाश सारा
और गूँज उठी ये धरती.
शंखों के इस कोलाहल ने
सब ओर ध्वनि ऐसी भर दी.

छिन्न-भिन्न कर गई हृदय
ये ध्वनि धृतराष्ट्र के पुत्रों का.
यही होती स्थिति जो करे बुरा
प्रभु के भक्तों और मित्रों का."

अध्याय-1,श्लोक-16,17,18

अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः ।
नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ॥ १६ ॥
काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः ।
धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः ॥ १७ ॥
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते ।
सौभद्रश्च महाबाहुः शंखान्दध्मुः पृथक्पृथक्‌ ॥ १८ ॥

हे राजन ! कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अपना अनंतविजय नामक शंख बजाया तथा नकुल और सहदेव ने सुघोष एवं मणिपुष्पक शंख बजाये. महान धनुर्धर काशीराज, परम योद्धा शिखंडी, धृष्टद्युम, विराट, अजेय सात्यिकी, द्रुपद, द्रौपदी के पुत्र तथा सुभद्रा के महाबाहु पुत्र आदि सबों ने अपने-अपने शंख बजाये.

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"कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने जब अपना
अनंतविजय नामक वो शंख बजाया.
संग-संग फिर उनके नकुल सहदेव ने भी
सुघोष और मणिपुष्पक को वहाँ गुंजाया.

महान धनुर्धर काशीराज, महावीर शिखंडी
धृष्टद्युम, विराट और सात्यिकी अविजित.
द्रौपदी के पिता व पुत्र और सुभद्रा का लाल
सबकी शंखध्वनि से युद्धभूमि हो गया गुंजित."