Monday, June 22, 2009

अध्याय 1 श्लोक 6

युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्‌ ।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः ॥६॥
पराक्रमी युधामन्यु, अत्यंत शक्तिशाली उत्तमौजा, सुभद्रा का पुत्र तथा द्रौपदी के पुत्र-ये सभी महारथी हैं.

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"एक के बाद एक पराक्रमी नाम
गिनती ख़त्म ही नही थी हो रही
जिधर ही दृष्टि डाले दुर्योधन उसे
दिख जाए शक्तिशाली योद्धा वही

पराक्रमी युधामन्यु, उत्तमौजा
थे महारथी बड़े ही शक्तिशाली
सुभद्रा और द्रौपदी के पाँचों पुत्र
कम नही थे ये भी कहीं से बलशाली "

अध्याय 1 श्लोक 5

धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्‌ ।
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङवः ॥५॥
इनके साथ ही धृष्टकेतु, चेकितान, काशीराज, पुरूजित, कुन्तिभोज तथा शैब्य जैसे महान शक्तिशाली योद्धा भी हैं.
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"बता रहा है दुर्योधन गुरु को
विपक्षी योद्धाओं की पूरी सूची
महारथियों के बल को मापने में
दिखा रहा था वह अत्यधिक रुचि.

शक्तिशाली योद्धाओं में दिखे उसे
धृष्टकेतु ,काशीराज और चेकितान
पुरुजित ,कुन्तिभोज और शैब्य
वे भी लगे उसे योद्धा वीर्यवान."

अध्याय 1 श्लोक 4

अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि ।
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः ॥४॥
इस सेना में भीम और अर्जुन के समान युद्ध करनेवाले अनेक वीर धनुर्धर हैं-यथा महारथी युयुधान, विराट तथा द्रुपद.
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"दुर्योधन की चिंता का कारण
सिर्फ द्रुपद का पुत्र ही नही था
पांडव सेना के अनेकों योद्धा
बढ़ा रहे थे उसके मन की व्यथा.

भीम -अर्जुन के बल का था उसे ज्ञान
उसी से लगा रहा था सबका अनुमान.
बल और पौरुष में कोई है कम नही
जैसे ये विराट,द्रुपद और ययुधान "

अध्याय 1 श्लोक 3

पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्‌ ।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ॥३ ॥
हे आचार्य! आपके बुद्धिमान्‌ शिष्य द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न द्वारा व्यूहाकार खड़ी की हुई पाण्डुपुत्रों की इस बड़ी भारी सेना को देखिए॥3॥

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"दुर्योधन द्रोणाचार्य को कर संबोधित
अपना संशय और शक मिटा रहा था
दिखाकर विपक्ष की व्यवस्थित सेना
शायद दायित्व उनका समझा रहा था

ये जो सजी है पांडवों की विशाल सेना
उसका सेनापति आपका ही शिष्य है.
आपसे जो ज्ञान पाया था धृष्टद्युम्न ने
उसका परिणाम यह व्यवस्थित दृश्य है."



अध्याय 1 श्लोक 2

दृष्टवा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा ।
आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत्‌ ॥२॥
संजय बोले- उस समय राजा दुर्योधन ने व्यूहरचनायुक्त पाण्डवों की सेना को देखा और द्रोणाचार्य के पास जाकर यह वचन कहा॥2॥
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"संजय ने धृतराष्ट्र को यथारूप
युद्धभूमि का दृश्य बतलाया
कैसे पांडवों की व्यूहरचना देख
शायद दुर्योधन का मन घबराया

तुंरत गया वो द्रोणाचार्य के पास
शायद ह्रदय का संशय मिटाने को
कहे ये शब्द अपने गुरु से उसने
अपने मन की स्थिति समझाने को."

Thursday, June 18, 2009

अध्याय 1 श्लोक 1

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय॥१॥
धृतराष्ट्र बोले- हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित, युद्ध की इच्छावाले मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया?
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"जन्मांध धृतराष्ट्र देख रहा है
संजय की दिव्य आँखों से .
पुत्र मोह की आकुलता आज
झलक रही है उसकी बातों से.

हे संजय मेरे और पांडु पुत्रों ने
जो युद्ध का है निर्णय लिया
अब धर्मक्षेत्र,कुरुक्षेत्र में आकर
बताओ उनलोगों ने क्या किया"