Thursday, July 28, 2016

अध्याय-1,श्लोक-30

न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः ।
निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव ॥30||

मैं यहाँ अब और अधिक खड़ा रहने में असमर्थ हूँ। मैं अपने को भूल रहा हूँ और मेरा सिर चकरा रहा है। हे कृष्ण ! मुझे तो केवल अमंगल के कारण दिख रहे हैं।

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"कह रहे हैं अर्जुन अब केशव से
मैं यहाँ और खड़ा न रह पाउँगा।
ऐसी हो रही मेरे मन की स्थिति कि
लगे मैं स्वयं को भी भूल जाऊँगा।

हे कृष्ण मुझे तो युद्ध का परिणाम
अमंगल ही अमंगल दिख रहा है।
जो भी था युद्ध का निमित्त हमारा
वह भी अब विपरीत लग रहा है।"

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