Friday, May 27, 2016

अध्याय-1,श्लोक-29

वेपथुश्च शरीरे में रोमहर्षश्च जायते ।
गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्वक्चैव परिदह्यते ॥ २९॥

मेरा सारा शरीर काँप रहा है, मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं, मेरा गाण्डीव धनुष मेरे हाथ से सरक रहा है और मेरी त्वचा जल रही है.
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"अपनों को देख सामने मोह से भरकर
कैसे हो रहे वीर योद्धा अर्जुन बेहाल.
प्रेम के अतिरक औ मोह के वशीभूत
अक्सर हो जाता है इंसान का ये हाल.


कह रहे कि सारा शरीर काँप रहा है
रोंगटे भी हो रहे मेरे देखो खड़े कैसे.
गाण्डीव मेरा सरक रहा है हाथों से
लग रहा त्वचा मेरी जल रही है जैसे."

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