Monday, June 22, 2009

अध्याय 1 श्लोक 2

दृष्टवा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा ।
आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत्‌ ॥२॥
संजय बोले- उस समय राजा दुर्योधन ने व्यूहरचनायुक्त पाण्डवों की सेना को देखा और द्रोणाचार्य के पास जाकर यह वचन कहा॥2॥
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"संजय ने धृतराष्ट्र को यथारूप
युद्धभूमि का दृश्य बतलाया
कैसे पांडवों की व्यूहरचना देख
शायद दुर्योधन का मन घबराया

तुंरत गया वो द्रोणाचार्य के पास
शायद ह्रदय का संशय मिटाने को
कहे ये शब्द अपने गुरु से उसने
अपने मन की स्थिति समझाने को."

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