Thursday, June 18, 2009

अध्याय 1 श्लोक 1

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय॥१॥
धृतराष्ट्र बोले- हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित, युद्ध की इच्छावाले मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया?
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"जन्मांध धृतराष्ट्र देख रहा है
संजय की दिव्य आँखों से .
पुत्र मोह की आकुलता आज
झलक रही है उसकी बातों से.

हे संजय मेरे और पांडु पुत्रों ने
जो युद्ध का है निर्णय लिया
अब धर्मक्षेत्र,कुरुक्षेत्र में आकर
बताओ उनलोगों ने क्या किया"

3 comments:

  1. वाह ! बहुत खूब !
    अत्यंत सुन्दर व्याख्या !!

    आपका प्रत्येक ब्लॉग आपकी सुन्दर और भावः पूर्ण रचनाओं से अलंकृत होता है !

    एक ओर अलंकार आपके इस चिठ्ठे में जुड़ गया है !

    हरे कृष्णा
    शुभकामनाएं

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