Monday, June 22, 2009

अध्याय 1 श्लोक 3

पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्‌ ।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ॥३ ॥
हे आचार्य! आपके बुद्धिमान्‌ शिष्य द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न द्वारा व्यूहाकार खड़ी की हुई पाण्डुपुत्रों की इस बड़ी भारी सेना को देखिए॥3॥

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"दुर्योधन द्रोणाचार्य को कर संबोधित
अपना संशय और शक मिटा रहा था
दिखाकर विपक्ष की व्यवस्थित सेना
शायद दायित्व उनका समझा रहा था

ये जो सजी है पांडवों की विशाल सेना
उसका सेनापति आपका ही शिष्य है.
आपसे जो ज्ञान पाया था धृष्टद्युम्न ने
उसका परिणाम यह व्यवस्थित दृश्य है."



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