ततः शंखाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः ।
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् ॥ १३॥
तत्पश्चात शंख, नगाड़े, बिगुल, तुरही तथा सींग एकसाथ बज उठे. वह समवेत स्वर अत्यंत कोलाहलपूर्ण था.
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"सुनकर सेनापति की शंख ध्वनि
हर ओर से अब ध्वनियाँ आने लगी
कहीं शंख, नगारे, बिगुल बजे तो
कहीं सींग और तुहरी बजने लगी.
हर कोई दे रहा था वाद्यों से साथ
सबकी ओर से होने लगी थी पहल.
इन सारे वाद्यों के समवेत स्वर
मिलकर बन गए थे एक कोलाहल."
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् ॥ १३॥
तत्पश्चात शंख, नगाड़े, बिगुल, तुरही तथा सींग एकसाथ बज उठे. वह समवेत स्वर अत्यंत कोलाहलपूर्ण था.
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"सुनकर सेनापति की शंख ध्वनि
हर ओर से अब ध्वनियाँ आने लगी
कहीं शंख, नगारे, बिगुल बजे तो
कहीं सींग और तुहरी बजने लगी.
हर कोई दे रहा था वाद्यों से साथ
सबकी ओर से होने लगी थी पहल.
इन सारे वाद्यों के समवेत स्वर
मिलकर बन गए थे एक कोलाहल."
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