Friday, May 27, 2016

अध्याय-1,श्लोक-28

दृष्टेवमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्‌ ।
सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति ॥ २८॥

अर्जुन ने कहा-हे कृष्ण ! इस प्रकार युद्ध की इच्छा रखने वाले अपने मित्रों तथा सम्बन्धियों को अपने समक्ष उपस्थित देखकर मेरे शरीर के अंग काँप रहे हैं और मेरा मुँह सूखा जा रहा है.
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"कांप रहे हैं मेरे शरीर के अंग सारे
और ये मुँह भी मेरा सूखा जा रहा.
अपने मन औ शरीर के परिवर्तन
अर्जुन कृष्ण के समक्ष है बता रहा.

बतलाया उसने भगवान् को कि अब
कैसी हो रही है उसकी मनःस्थिति.
युद्धभूमि में देख मित्रों-सम्बन्धियों को
उससे संभल नही रही ये परिस्थिति."

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