Tuesday, May 24, 2016

अध्याय-1,श्लोक-27

तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्‌ बन्धूनवस्थितान्‌ ।
कृपया परयाविष्टो विषीदत्रिदमब्रवीत्‌ ॥२७ ॥

जब कुन्तीपुत्र अर्जुन ने मित्रों तथा सम्बन्धियों की इन विभिन्न श्रेणियों को देखा तो वह करुणा से अभिभूत हो गया और इसप्रकार बोला.
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"जहाँ तक दृष्टि जा रही अर्जुन की
मित्रता दिखे या पारिवारिक रिश्ता
रिश्ते-नातों की ये विभिन्न श्रेणियाँ
उपजाने लगी कुन्तीपुत्र में कोमलता.

अभिभूत हुए बिना रह न सके अर्जुन
सम्बन्धों को इसतरह विपक्ष में देख.
जब निकली उनके मुख से वाणी तो
उसमें भी था भावना का हीअतिरेक."

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