Wednesday, May 4, 2016

अध्याय-1,श्लोक-26

तत्रापश्यत्स्थितान्‌ पार्थः पितृनथ पितामहान्‌ ।
आचार्यान्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा ।
श्वशुरान्‌ सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि ॥ २६ ॥

अर्जुन ने वहाँ पर दोनों पक्षों की सेनाओं के मध्य में अपने चाचा-ताउओं, पितामहों, गुरुओं, मामाओं, भाइयों, पुत्रों, पौत्रों, ससुरों और शुभचिंतकों को भी देखा.
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"अब था अर्जुन दोनों पक्षों के मध्य
जहाँ से सारे योद्धा उसे दिख रहे थे,
देखा तब उसने सामने पितामहों को
संग में उनके चाचा ताऊ भी खड़े थे.

गुरु, मामा , भाई, पुत्र, पौत्र, ससुर
सबको ही उनसें अपने सामने पाया.
हर ओर ही दिखे सगे-सम्बन्धी उसे
जहाँ-जहाँ उसने नजर को दौड़ाया."

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