Friday, September 30, 2016

अध्याय-1,श्लोक-36

पापमेवाश्रयेदस्मान्‌ हत्वैतानाततायिनः ।
तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान्‌ ।
स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिनः स्याम माधव ॥ ३६॥

अगर हम ऐसे आततायियों का वध करते हैं तो हम पर पाप चढ़ेगा, अतः यह उचित नही होगा कि हम धृतराष्ट्र के पुत्रों तथा उनके मित्रों का वध करें। हे लक्ष्मीपति कृष्ण ! इससे हमें क्या लाभ होगा ? और अपने ही कुटुम्बियों को मार कर हम किस प्रकार सुखी हो सकते हैं?
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जिन आततायियों के वध की
अनुमति हमारा शास्त्र भी देता है।
जिनका कार्य धर्म और समाज
दोनों को ही  व्यथित करता है।

उनके पक्ष व हित की बातें आज
अर्जुन मोहवश कृष्ण से कर रहे।
अपने सुख औ संबंधियों की बातें
क्षत्रीय धर्म से ऊपर भी रख रहे।

पूछ रहे हैं लक्ष्मीपति से मार इन्हें
हमें क्या सुख और लाभ मिलेगा?
धृतराष्ट्र के पुत्रों को गर मारा तो
प्रभु हम पर भी तो पाप चढ़ेगा।

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