Sunday, September 17, 2017

अध्याय-10, श्लोक-28

आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक्‌ ।
प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः ॥ २८ ॥
मैं हथियारों में वज्र हूँ, गायों में सुरभि, संतति उत्पत्ति के कारणों में प्रेम का देवता कामदेव तथा सर्पों में वासुकि हूँ।
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इंद्र का वज्र हूँ मैं
सभी प्रकार के हथियारों में
मुझे सुरभि जानों
गायों के समस्त प्रकारों में।

धर्मानुसार संतानोत्पत्ति में
मैं प्रेम का देव कंदर्प हूँ
साँपों के मध्य में मैं
स्वयं वासुकि सर्प हूँ।

Tuesday, August 1, 2017

अध्याय-10, श्लोक-27

उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्धवम्‌ ।
एरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम्‌ ॥ २७ ॥
घोड़ों में मुझे उच्चःश्रवा जानो, जो अमृत के लिए समुद्र मंथन के समय उत्पन्न हुआ था। गजराजों में मैं ऐरावत हूँ तथा मनुष्यों में राजा हूँ।
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मुझे उच्चःश्रवा जानो  
समस्त घोड़ों के मध्य में 
निकला था जो अमृत हेतु
समुद्र मंथन के उपलक्ष्य में ।

हाथियों के मध्य में मैं 
समुद्र से उत्पन्न ऐरावत हूँ 
मनुष्यों के बीच में मैं 
नरपति प्रजा पालक हूँ ।।

अध्याय-10, श्लोक-26

अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः ।
गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः ॥ २६ ॥
मैं समस्त वृक्षों में अस्वत्थ वृक्ष हूँ तथा देवर्षियों में नारद हूँ। मैं गंधर्वों में चित्ररथ हूँ और सिद्ध पुरुषों में कपिल मुनि हूँ।
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वृक्षों के बीच में मैं
वृक्ष हूँ पीपल का
देव ऋषियों में मैं
भक्त शिरोमणि नारद।

सभी गंधर्वों में हूँ
मैं चित्ररथ गंधर्व
सिद्ध पुरुषों में कपिल
सांख्ययोग विशारद ।।

Monday, July 31, 2017

अध्याय-10, श्लोक-25

महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्‌ ।
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः ॥ २५ ॥
मैं महर्षियों में भृगु हूँ, वाणी में दिव्य ओंकार हूँ, समस्त यज्ञों में पवित्र नाम का कीर्तन (जप) तथा समस्त अचलों में हिमालय हूँ।
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महर्षि भृगु हूँ मैं जितने भी 
महर्षियों के हैं यहाँ प्रकार
वाणी के मध्य से हूँ आदि 
दिव्य,पवित्र,अक्षर ओंकार ।

जितने भी यज्ञों की है चर्चा
उनमें हूँ नाम जप यज्ञ विमल 
न चलनेवालों की श्रेणी में से 
मानो मुझे हिमालय अचल।।

अध्याय-10, श्लोक-24

पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम्‌ ।
सेनानीनामहं स्कन्दः सरसामस्मि सागरः ॥ २४ ॥
हे अर्जुन ! मुझे समस्त पुरोहितों में मुख्य पुरोहित बृहस्पति जानो। मैं ही समस्त सेनानायकों में कार्तिकेय हूँ और समस्त जलाशयों में समुद्र हूँ।
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हे पार्थ! पुरोहितों के बीच 
मैं ही हूँ मुख्य पुरोहित बृहस्पति 
सेनानायकों के मध्य शिव पुत्र 
कार्तिकेय,देवताओं का सेनापति।


यूँ तो मुझसे ही हैं सृष्टि के 
समस्त जल और उसके स्रोत 
फिर भी जलाशयों के बीच 
समुद्र हूँ सदा जल से ओतप्रोत।।

अध्याय-10, श्लोक-23

रुद्राणां शङ्‍करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम्‌ ।
वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम्‌ ॥ २३ ॥ 
मैं समस्त रुद्रों में शिव हूँ, यक्षों में तथा राक्षसों में सम्पत्ति का देवता (कुबेर) हूँ, वसुओं में अग्नि हूँ और समस्त पर्वतों में मेरु हूँ।
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रुद्रों की श्रेणी में मैं 
सदाशिव शंकर हूँ 
यक्षों राक्षसों के मध्य 
धन का स्वामी कुबेर हूँ ।

वसुओं के मध्य से 
अग्नि मुझे ही जानो 
समस्त पर्वतों के बीच 
मुझे मेरु पर्वत मानो।

अध्याय-10, श्लोक-22

वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः ।
इंद्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना ॥ २२ ॥
मैं वेदों में सामवेद हूँ, देवों में स्वर्ग का राजा इंद्र हूँ, इंद्रियों में मन हूँ तथा समस्त जीवों की जीवनी शक्ति हूँ।
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चारों वेदों के बीच चुनो
तो मैं उनमें सामवेद हूँ
राजाओं की श्रेणी में से
मैं स्वर्ग का राजा इंद्र हूँ।

सभी इंद्रियों के मध्य मैं
चंचल चलायमान मन हूँ
जीवों की जीवनी शक्ति
मैं हूँ बनाता उन्हें चेतन हूँ।।