पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम् ।
सेनानीनामहं स्कन्दः सरसामस्मि सागरः ॥ २४ ॥
सेनानीनामहं स्कन्दः सरसामस्मि सागरः ॥ २४ ॥
हे अर्जुन ! मुझे समस्त पुरोहितों में मुख्य पुरोहित बृहस्पति जानो। मैं ही समस्त सेनानायकों में कार्तिकेय हूँ और समस्त जलाशयों में समुद्र हूँ।
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हे पार्थ! पुरोहितों के बीच
मैं ही हूँ मुख्य पुरोहित बृहस्पति
सेनानायकों के मध्य शिव पुत्र
कार्तिकेय,देवताओं का सेनापति।
यूँ तो मुझसे ही हैं सृष्टि के
समस्त जल और उसके स्रोत
फिर भी जलाशयों के बीच
समुद्र हूँ सदा जल से ओतप्रोत।।
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