Tuesday, April 5, 2016

अध्याय-1,श्लोक-19

स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्‌ ।
नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन्‌ ॥ १९ ॥
इन विभिन्न शंखों की ध्वनि कोलाहलपूर्ण बन गई जो आकाश तथा पृथ्वी को शब्दायमान करती हुई धृतराष्ट्र के पुत्रों के हृदयों को विदीर्ण करने लगी.
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"गूँज उठा आकाश सारा
और गूँज उठी ये धरती.
शंखों के इस कोलाहल ने
सब ओर ध्वनि ऐसी भर दी.

छिन्न-भिन्न कर गई हृदय
ये ध्वनि धृतराष्ट्र के पुत्रों का.
यही होती स्थिति जो करे बुरा
प्रभु के भक्तों और मित्रों का."

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