Friday, April 8, 2016

अध्याय-1,श्लोक-21,22

अर्जुन उवाच
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ।
यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान्‌ ॥ २१ ॥
कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे ॥ २२ ॥
अर्जुन ने कहा - हे अच्युत ! कृपा करके मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच ले चले जिससे मैं यहाँ उपस्थित युद्ध की अभिलाषा रखने वालों को और शस्त्रों की इस महान परीक्षा में, जिनसे मुझे संघर्ष करना है, उन्हें देख सकूँ.

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"लक्ष्मी रत रहे सेवा में जिनके वे प्रभु
कर रहे सेवक की सेवा सारथी बनके.
अर्जुन को भी है भान पद का उनके
तभी तो कर रहे प्रार्थना अच्युत कहके.

कहा हे अच्युत दोनों सेनाओं के बीच
कृपा करके आप मेरा यह रथ ले चले.
युद्ध की इच्छा से उपस्थित लोगों को
शस्त्र परीक्षा से पहले हम भी देख लें."



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