Tuesday, April 5, 2016

अध्याय-1,श्लोक-16,17,18

अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः ।
नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ॥ १६ ॥
काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः ।
धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः ॥ १७ ॥
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते ।
सौभद्रश्च महाबाहुः शंखान्दध्मुः पृथक्पृथक्‌ ॥ १८ ॥

हे राजन ! कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अपना अनंतविजय नामक शंख बजाया तथा नकुल और सहदेव ने सुघोष एवं मणिपुष्पक शंख बजाये. महान धनुर्धर काशीराज, परम योद्धा शिखंडी, धृष्टद्युम, विराट, अजेय सात्यिकी, द्रुपद, द्रौपदी के पुत्र तथा सुभद्रा के महाबाहु पुत्र आदि सबों ने अपने-अपने शंख बजाये.

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"कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने जब अपना
अनंतविजय नामक वो शंख बजाया.
संग-संग फिर उनके नकुल सहदेव ने भी
सुघोष और मणिपुष्पक को वहाँ गुंजाया.

महान धनुर्धर काशीराज, महावीर शिखंडी
धृष्टद्युम, विराट और सात्यिकी अविजित.
द्रौपदी के पिता व पुत्र और सुभद्रा का लाल
सबकी शंखध्वनि से युद्धभूमि हो गया गुंजित."

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