मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु ।
मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायण: ॥ ३४ ॥
मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायण: ॥ ३४ ॥
अपने मन को मेरे नित्य चिंतन में लगाओ, मेरे भक्त बनो, मुझे नमस्कार करो और मेरी ही पूजा करो। इस प्रकार मुझमें पूर्णतया तल्लीन होने पर निश्चित रूप से मुझको प्राप्त होगे।
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मन को मेरे चिंतन में लगाओ
मेरे नाम,रूप का भजन करो।
नित स्मरण, नमन, पूजन, वंदन
हर तरह से मन को मुझमें धरो।।
ऐसे करते जब मन पूरी तरह से
मेरे में तल्लीन हो जाएगा तेरा।
पूर्ण शरणागति की उस स्थिति में
प्राप्त होगा फिर तुझे संग मेरा।।
****** परम गुह्य ज्ञान नाम का नवाँ अध्याय सम्पूर्ण हुआ*******