समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः ।
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम् ॥ २९ ॥
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम् ॥ २९ ॥
मैं न तो किसी से द्वेष करता हूँ, न ही किसी के साथ पक्षपात करता हूँ। मैं सबों के लिए समभाव हूँ। किंतु जो भी भक्तिपूर्वक मेरी सेवा करता है, वह मेरा मित्र है, मुझमें स्थित रहता है और मैं भी उसका मित्र हूँ।
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न मैं किसी से द्वेष करूँ
न ही किसी से पक्षपात।
मेरे लिए तो सब हैं समान
सब ही अपने संगी साथ।।
हाँ,जो मुझसे प्रेम करे और
दिन रात मुझे ही जो भजे।
उसके हृदय में नित मैं बसूँ
मेरा हृदय भी उसे न तजे।।
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