Thursday, February 16, 2017

अध्याय-9, श्लोक-33

किं पुनर्ब्राह्मणाः पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा ।
अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम्‌ ॥३३॥
फिर धर्मात्मा ब्राह्मणों, भक्तों तथा राजर्षियों के लिए तो कहना ही क्या है! अतः इस क्षणिक दुखमय संसार में आ जाने पर मेरी प्रेमाभक्ति में अपने आप को लगाओ।
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फिर वे कितने प्रिय हैं क्या बताऊँ 
जो सदा ही मझमें ही डूबे है रहते।
वो धर्मात्मा ब्राह्मण, वो मेरा भक्त 
और राजर्षि जो सदा मुझे हैं भजते।।


इसलिए इस संसार में समय न गँवा 
ये सब क्षण भर में नष्ट होनेवाला है।
दुःख भरे इस संसार से निकल शीघ्र 
तू हर पल निरंतर मेरा ही स्मरण कर।।

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