क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति ।
कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति ॥ ३१ ॥
कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति ॥ ३१ ॥
वह तुरंत धर्मात्मा बन जाता है और स्थायी शांति प्राप्त करता है। हे कुंतिपुत्र! निडर होकर घोषणा कर दो कि मेरे भक्त का कभी विनाश नहीं होता है।
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जल्दी ही वो पथ पर लौटेगा
शुद्धता का हर आचरण करेगा।
परम शांति प्राप्त होगी उसको
भक्ति से कभी न वो भटकेगा।।
हे अर्जुन! आज तुम बता दो सबको
हे अर्जुन! आज तुम बता दो सबको
कर दो घोषणा मेरी तरफ़ से आज।
मेरे भक्त का कभी विनाश न होता
मैं आने नहीं देता उनपर कभी आँच।।
मैं रखूँ सदा उसकी भक्ति का लाज
सम्भाल लूँगा मैं स्वयं,उसे जो गिरा।
लड़खाएँगे कदम तो भी क्या हुआ
गिरने न दूँगा,नाता उसका मुझसे जुड़ा।।
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