Thursday, February 16, 2017

अध्याय-9, श्लोक-30

अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्‌ ।
साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः ॥ ३० ॥
यदि कोई जघन्य से जघन्य कर्म करता है, किंतु यदि वह भक्ति में रत रहता है तो उसे साधु मानना चाहिए क्योंकि वह अपने संकल्प में अडिग रहता है।
**************************************
मेरी भक्ति में जो है लगा 
क्षणभर को अगर वह डिगा।
दुराचार हो गया उससे अगर 
पर मन भक्ति से ही है भीगा।।

ऐसे को साधु ही समझो तुम 
क्योंकि भक्ति उसने छोड़ी नहीं।
ग़लती से ग़लती हो गयी उससे 
मैं स्वयं करूँगा उसको सही।।

No comments:

Post a Comment