Thursday, February 16, 2017

अध्याय-9, श्लोक-32

मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्यु पापयोनयः ।
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम्‌ ॥ ३२ ॥ 
हे पार्थ! जो लोग मेरी शरण ग्रहण करते हैं, वे भले ही निन्मजन्मा स्त्री, वैश्य (व्यापारी) तथा शूद्र (श्रमिक) क्यों न हो, वे परमधाम को प्राप्त करते हैं।
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हे पार्थ!भक्ति में भेदभाव नहीं 
हर भक्त समान है मेरे लिए।
कोई भी शरण में आ जाए मेरे 
बस मन में भक्ति भाव लिए।।

मैं न देखता कुल,जन्म व धर्म 
मैं तो सबको अपना लेता हूँ।
भक्त स्त्री, वैश्य या शूद्र हो 
सबको ही परम धाम देता हूँ।।

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