महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः ।
भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्यम् ॥ १३ ॥
भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्यम् ॥ १३ ॥
हे पार्थ! मोहमुक्त महात्माजन दैवी प्रकृति के संरक्षण में रहते हैं। वे पूर्णतः भक्ति में निमग्न रहते हैं क्योंकि वे मुझे आदि तथा अविनाशी भगवान के रूप में जानते हैं।
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हे पार्थ! मोह से हैं मुक्त महात्मा
वे सब मेरी शरण ग्रहण करते हैं।
भौतिक प्रकृति के कष्ट से दूर वे
दैवी प्रकृति से संरक्षित रहते हैं।।
पूरी तरह मेरी भक्ति में निमग्न
अनन्य भाव से मुझे ही भजते हैं।
मैं ही हूँ सभी जीवों का उद्ग़म
ये सत्य भलीभाँति वे जानते हैं।।
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