Saturday, January 7, 2017

अध्याय-9, श्लोक-12

मोघाशा मोघकर्माणो मोघज्ञाना विचेतसः ।
राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिताः ॥ १२ ॥
जो लोग इसप्रकार मोहग्रस्त होते हैं , वे आसुरी तथा नास्तिक विचारों के प्रति आकृष्ट रहते हैं। इस मोहग्रस्त अवस्था में उनकी मुक्ति-आशा, उनके सकाम कर्म तथा ज्ञान का अनुशीलन सभी निष्फल हो जाते हैं।
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इसप्रकार मोहित होनेवाले लोग
किसी भी क्षेत्र में सफल न होते।
मुक्ति का पथ हो या सकाम कर्म
या ज्ञान, हर जगह निष्फल होते।।

भौतिक प्रकृति की माया में फँस
उसके जाल में ही उलझे रहते हैं।
आसुरी व्यवहार, नास्तिक विचार 
यही सब उन्हें आकर्षित करते हैं।।

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