Sunday, January 15, 2017

अध्याय-9, श्लोक-19

तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्‌णाम्युत्सृजामि च ।
अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्चाहमर्जुन ॥ १९ ॥
हे अर्जुन! मैं ही ताप प्रदान करता हूँ और वर्षा को रोकता तथा लाता हूँ। मैं अमरत्व हूँ और साक्षात मृत्यु भी हूँ। आत्मा तथा पदार्थ (सत् तथा असत्) दोनों मुझ ही में हैं।
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हे अर्जुन! मुझसे ही ताप मिले
मैं ही जगत में वर्षा भी लाता।
मैं ही सूरज की गर्मी और मैं ही
बूँदों की शीतलता बन जाता।।

कभी न नष्ट हो वो अमरत्व मैं
मैं ही हूँ सर्वहारी मृत्यु साक्षात।
मैं ही सत्य रूप में आत्मा होता
और सत्य रूप में मैं ही पदार्थ।।

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