ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ते यजन्तो मामुपासते ।
एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम् ॥ १५ ॥
अन्य लोग जो ज्ञान के अनुशीलन द्वारा यज्ञ में लगे रहते हैं, वे भगवान की पूजा उनके अद्वय रूप में, विविध रूपों में तथा विश्व रूप में करते हैं।
एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम् ॥ १५ ॥
अन्य लोग जो ज्ञान के अनुशीलन द्वारा यज्ञ में लगे रहते हैं, वे भगवान की पूजा उनके अद्वय रूप में, विविध रूपों में तथा विश्व रूप में करते हैं।
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ज्ञान के अनुशीलन द्वारा कुछ
लोग यज्ञ कार्य में लगे रहते हैं।
कुछ मुझे एक ही तत्त्व जानकर
अद्वय रूप में मुझको पूजते हैं।।
अलग-अलग तत्त्व मानकर कुछ
मनुष्य द्वैतभाव से मुझे भजते हैं।
अनेक विधियाँ हैं पूजा की कुछ
मेरे विश्व रूप की पूजा करते हैं।।
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