अहं हि सर्वयज्ञानां भोक्ता च प्रभुरेव च ।
न तु मामभिजानन्ति तत्त्वेनातश्च्यवन्ति ते ॥ २४ ॥
न तु मामभिजानन्ति तत्त्वेनातश्च्यवन्ति ते ॥ २४ ॥
मैं ही समस्त यज्ञों का एकमात्र भोक्ता तथा स्वामी हूँ। अतः जो लोग मेरे वास्तविक दिव्य स्वभाव को नहीं पहचान पाते, वे नीचे गिर जाते हैं।
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जितने भी यज्ञ किए जाते हैं
मैं ही उन सबका भोक्ता हूँ।
मैं ही हूँ इस जगत का स्वामी
मैं ही पालन-पोषण करता हूँ।।
जो लोग मेरे इस वास्तविक
स्वभाव को नही जान पाते हैं।
कामनाओं जाल में फँसकर
बारबार पुनर्जन्म को पाते हैं।।
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