अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते ।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥ २२॥
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥ २२॥
किंतु जो लोग अनन्य भाव से मेरे दिव्य स्वरूप का ध्यान करते हुए निरंतर मेरी पूजा करते हैं, उनकी जो आवश्यकताएँ होती हैं, उन्हें मैं पूरा करता हूँ और जो कुछ उनके पास है, उसकी रक्षा करता हूँ।
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हरपल जो करते मेरा चिंतन
अनन्य भाव से मुझे है भजते।
मैं ही लक्ष्य होता हूँ जिनका
जो निरंतर मुझे ही हैं पूजते।।
ऐसे लोगों के ज़िम्मेदारी को
मैं स्वयं अपने पर उठाता हूँ।
जो है उसकी रक्षा करता और
जो न हो उसे लाकर देता हूँ।।
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हरपल जो करते मेरा चिंतन
अनन्य भाव से मुझे है भजते।
मैं ही लक्ष्य होता हूँ जिनका
जो निरंतर मुझे ही हैं पूजते।।
ऐसे लोगों के ज़िम्मेदारी को
मैं स्वयं अपने पर उठाता हूँ।
जो है उसकी रक्षा करता और
जो न हो उसे लाकर देता हूँ।।
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