Tuesday, June 20, 2017

अध्याय-10, श्लोक-11

तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं           तमः।
नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता ॥ ११ ॥
मैं उन पर विशेष कृपा करने के हेतु उनके हृदयों में वास करते हुए ज्ञान के प्रकाशमान दीपक के द्वारा अज्ञानजन्य अंधकार को दूर करता हूँ।
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ऐसे अनन्य शुद्ध भक्तों पर
होती है मेरी भी कृपा विशेष
भक्ति की सहूलियत देने में
छोड़ता नहीं मैं कुछ भी शेष।

इनके हृदयों में वास कर मैं
उन्हें सदा प्रकाशित हूँ करता
ज्ञान के आलोक से मैं इनके
अज्ञान के अंधकार हर लेता।।

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