कथं विद्यामहं योगिंस्त्वां सदा परिचिन्तयन् ।
केषु केषु च भावेषु चिन्त्योऽसि भगवन्मया ॥ १७ ॥
केषु केषु च भावेषु चिन्त्योऽसि भगवन्मया ॥ १७ ॥
हे कृष्ण! हे परम योगी! मैं किस तरह आपका चिंतन करूँ और आपको कैसे जानूँ? हे भगवान! आपका स्मरण किन-किन रूपों में किया जाय?
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हे योगेश्वर! हे भगवन! बताए
कैसे हम आपको जान पाए
कैसे मन आप में हम लगाए
कैसे आपका चिंतन कर पाए?
किस-किस भाव में भजे हम
किस-किस रूप का ध्यान धरे
कैसे हम आपको जाने-पहचाने
आपको पाने के लिए क्या करे?
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