Saturday, June 24, 2017

अध्याय-10, श्लोक-16

वक्तुमर्हस्यशेषेण दिव्या ह्यात्मविभूतयः ।
याभिर्विभूतिभिर्लोकानिमांस्त्वं व्याप्य तिष्ठसि ॥ १६ ॥
कृपा करके विस्तारपूर्वक मुझे अपने उन दैवी ऐश्वर्यों को बताएँ जिनके द्वारा आप इन समस्त लोकों में व्याप्त हैं।
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कैसे रहते हैं आप व्याप्त
इस सृष्टि के कण-कण में
समस्त लोकों में हर समय
उपस्थित कैसे हर क्षण में।

ये अलौकिक दिव्य ऐश्वर्य
प्रभु हमें विस्तार से बताए
आपके सिवा कौन समर्थ
जो हमें ये वैभव समझाए।।

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