Wednesday, June 21, 2017

अध्याय-10, श्लोक-15

स्वयमेवात्मनात्मानं वेत्थ त्वं पुरुषोत्तम ।
भूतभावन भूतेश देवदेव जगत्पते ॥ १५ ॥
हे परमपुरुष, हे सबके उद्गगम, हे समस्त प्राणियों के स्वामी, हे देवों के देव, हे ब्रह्मांड के प्रभु! निस्सन्देह एकमात्र आप ही अपने को अपनी अंतरंगाशक्ति से जानने वाले हैं।
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हे पुरुषोत्तम, हे सबके आदि प्रभु 
ब्रह्मांड नायक हे  सृष्टि के स्वामी
हे देवों के देव हे आदिदेव भगवन 
स्वतंत्र, स्वराट आप प्रभु अंतर्यामी।

एकमात्र आप ही स्वयं को जानते 
अन्य कोई नहीं है इस त्रिभुवन में।
आप चाहो तो कोई जाने आपको 
जब देते ज्ञान आप बैठ अंतर्मन में।।

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