Thursday, June 15, 2017

अध्याय-10, श्लोक-4-5

बुद्धिर्ज्ञानमसम्मोहः क्षमा सत्यं दमः शमः ।
सुखं दुःखं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च ॥ ४ ॥
अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयशः ।
भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधाः ॥ ५॥
बुद्धि, ज्ञान, संशय तथा मोह से मुक्ति, क्षमाभाव, सत्यता, इन्द्रियनिग्रह, मननिग्रह, सुख तथा दुःख, जन्म, मृत्यु, भय, अभय, अहिंसा, समता, तुष्टि, तप, दान, यश तथा अपयश-जीवों के ये विविध गण मेरे ही द्वारा उत्पन्न हैं।
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संशय मिटानेवाली बुद्धि 
मोह से मुक्त करे जो ज्ञान 
क्षमा व सत्य का आचरण 
स्थिर मन,इंद्रियों पे नियंत्रण।

जन्म मृत्यु का कारण 
सुख दुःख की अनुभूति
भय अभय की चिंता 
यश अपयश की प्राप्ति।

तपस्या की शक्ति और 
अहिंसा व समता का भाव 
दान की प्रवृत्ति और 
संतुष्ट होनेवाला स्वभाव।

इन सबके पीछे का कारण 
मनुष्यों के विभिन्न स्वभाव 
मुझसे से सब उत्पन्न होते 
मुझसे से मिलते हैं सारे भाव।।

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