यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम् ।
असम्मूढः स मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥ ३ ॥
असम्मूढः स मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥ ३ ॥
जो मुझे अजन्मा, अनादि, समस्त लोकों के स्वामी के रूप में जानता है, मनुष्यों में केवल वही मोहरहित और समस्त पापों से मुक्त होता है।
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मैं हूँ जन्म-मृत्यु से परे अजन्मा
मैं हूँ समस्त लोकों का स्वामी
मेरा कोई आरम्भ या अंत नहीं
मैं आदि अंत से परे हूँ अनादि।
मरणशील मनुष्यों में से जो इन
बातों को समझ व जान लेता है
मोह में वो फिर पड़ता नहीं कभी
सारे पापों से भी मुक्त होता है।।
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