मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम् ।
कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ॥ ९ ॥
कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ॥ ९ ॥
मेरे शुद्ध भक्तों के विचार मुझमें वास करते हैं, उनके जीवन मेरी सेवा में अर्पित रहते हैं और वे एक दूसरे को ज्ञान प्रदान करते तथा मेरे विषय में बातें करते हुए परम संतोष तथा आनंद का अनुभव करते हैं।
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मुझमें चित्त लगा है जिनका
उनके मन मुझमें वास करते हैं
परस्पर मेरी कथा लीला गान
इन कार्यों में ही लगे रहते हैं।
मेरी सेवा में जीवन समर्पित
कुछ और इच्छा न होती उनकी
आनंद में रमण करते हैं सदा वे
लग जाती मुझमें मति जिनकी।।
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