न मे विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः ।
अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः ॥ २ ॥
अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः ॥ २ ॥
न तो देवतागण मेरी उत्पत्ति या ऐश्वर्य को जानते हैं और न महर्षिगण ही जानते हैं, क्योंकि मैं सभी प्रकार से देवताओं और महर्षियों का भी कारण स्वरूप (उद्गगम) हूँ।
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न देवी देवता न महान महर्षि
कोई भी मुझे कहाँ जान पाए
मेरा ऐश्वर्य और मेरा प्रभाव
भलीभाँति कोई समझ न पाए।
क्योंकि सभी देवी देवता और
ऋषि मुनियों के समस्त प्रकार
सबको उत्पन्न मैंने ही है किया
मैंने ही दिया आकार व आहार।
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