अर्जुन उवाच
परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान् ।
पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम् ॥ १२ ॥
आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा ।
परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान् ।
पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम् ॥ १२ ॥
आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा ।
असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे ॥ १३ ॥
अर्जुन ने कहा-आप परम भगवान, परमधाम, परमपवित्र, परम सत्य हैं। आप नित्य, दिव्य, आदि पुरुष, अजन्मा तथा महानतम हैं। नारद, असित, देवल तथा व्यास जैसे ऋषि आपके इस सत्य की पुष्टि करते हैं और अब आप स्वयं भी मुझसे प्रकट कह रहे हैं।
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र्जुन बोले हे भगवन! आप ही
अर्जुन ने कहा-आप परम भगवान, परमधाम, परमपवित्र, परम सत्य हैं। आप नित्य, दिव्य, आदि पुरुष, अजन्मा तथा महानतम हैं। नारद, असित, देवल तथा व्यास जैसे ऋषि आपके इस सत्य की पुष्टि करते हैं और अब आप स्वयं भी मुझसे प्रकट कह रहे हैं।
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र्जुन बोले हे भगवन! आप ही
परम ईश्वर आप परम आश्रय हो
परम शुद्ध परम पावन आप ही
परमसत्य हर चेतना के विषय हो।
शाश्वत सनातन पुरुष हैं आप प्रभु
दिव्य, अलौकिक अजन्मा है आप
आप सारे देवताओं के आदि देव
आप ही तो हैं विभु सर्वत्र व्याप्त।
नारद, असित, देवल और व्यास
सबकी यही मति है आपको लेकर
आप ने भी पुष्टि कर ही दी इसकी
आज ये परम ज्ञान स्वयं मुझे देकर।
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