Sunday, December 4, 2016

अध्याय-7, श्लोक-11

बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम्‌ ।
धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ ॥ ११ ॥
मैं ही बलवानों का कामनाओं तथा इच्छा से रहित बल हूँ। हे भरतश्रेष्ठ! (अर्जुन)! मैं वह काम हूँ जो धर्म के विरूद्ध नहीं है।
***************************************
जिसमें कोई कामना नहीं है 
और न ही कोई आसक्ति है।
हे भरतश्रेष्ठ अर्जुन! मैं ही हूँ 
बलवानों में जो शक्ति है।।

मैं वह विषयी जीवन भी हूँ 
जो शास्त्र अनुसार होता है।
हर ही कार्य मुझसे जुड़ा है  
जो धर्म के अधीन रहता है।।

No comments:

Post a Comment