कामैस्तैस्तैर्हृतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः ।
तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया ॥ २० ॥
तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया ॥ २० ॥
जिनकी बुद्धि भौतिक इच्छाओं द्वारा मारी गई है, वे देवताओं की शरण में जाते हैं और वे अपने-अपने स्वभाव के अनुसार पूजा के विशेष विधि-विधानों का पालन करते हैं।
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इस जग की कामनाओं ने
जिनकी बुद्धि नष्ट कर दी है।
उन्होंने ही उसकी पूर्ति हेतु
देवताओं की शरण ली है।।
अपने स्वार्थ के अनुसार वे
देवताओं का चयन करते हैं।
जैसा होता स्वभाव जिनका
वैसा विधि-विधानों चुनते हैं।।
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