Friday, December 23, 2016

अध्याय-9, श्लोक-10

मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरं ।
हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ॥ १० ॥
हे कुंतीपुत्र! यह भौतिक प्रकृति मेरी ही शक्तियों में से एक है और मेरी अध्यक्षता में कार्य करती है, जिससे सारे चर तथा अचर प्राणी उत्पन्न होते हैं।इसके शासन में यह जगत बारम्बार सृजित और विनष्ट होता रहता है।
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हे कुंतीपुत्र! चर-अचर से समाहित ये 
भौतिक प्रकृति मेरी ही एक शक्ति है।
मेरी द्वारा ही होती है संचालित और 
मेरी अध्यक्षता में ही ये कार्य करती है।।

मेरे अधीन है वह और उसके शासन में 
जगत बारबार उत्पन्न-विनष्ट होता है।
मेरा प्रत्यक्ष कोई लेना-देना नही होता 
प्रकृति से ही जग परिवर्तित होता है।।

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