Monday, December 19, 2016

अध्याय-8, श्लोक-28

वेदेषु यज्ञेषु तपः सु चैव दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम्‌ ।
अत्येत तत्सर्वमिदं विदित्वा योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम्‌ ॥ २८ ॥
जो व्यक्ति भक्तिमार्ग स्वीकार करता है,वह वेदाध्ययन, तपस्या, दान, दार्शनिक तथा सकाम कर्म करने से प्राप्त होनेवाले फलों से वंचित नहीं होता। वह मात्र भक्ति सम्पन्न करके इन समस्त फलों की प्राप्ति करता है और अंत में परम नित्य धाम को प्राप्त होता है।
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जो व्यक्ति भक्ति के पथ पे जाता
वह किसी फल से वंचित न रहता।
वेदाध्ययन, तपस्या, दान  का फल 
उसे बिना प्रयास सहज ही मिलता।।

दार्शनिक और सकाम कर्म के पुण्य 
वह मात्र भक्ति से प्राप्त कर लेता।
समस्त पुण्य फलों को भोगता हुआ 
अंत में मेरे परम धाम को आ जाता।

****** भगवद्प्राप्ति नाम का आठवाँ  अध्याय सम्पूर्ण हुआ*******

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