धूमो रात्रिस्तथा कृष्ण षण्मासा दक्षिणायनम् ।
तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते ॥ २५ ॥
तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते ॥ २५ ॥
जो योगी धुएँ, रात्रि, कृष्णपक्ष में या सूर्य के दक्षिणायन रहने के छह महीनों में दिवंगत होता है, वह चंद्रलोक को जाता है, किंतु वहाँ से पुनः (पृथ्वी पर) चला आता है।
**********************************
जब अग्नि का धुआँ फैला हो
जब अग्नि का धुआँ फैला हो
या रात्रि का अंधकार घना हो।
कृष्णपक्ष का घटता चंद्रमा हो
और सूर्य दक्षिणायन बना हो।।
उन छह महीनों में जो भी योगी
भौतिक शरीर का त्याग करता है।
पहले तो स्वर्ग जा सुख भोगता
पर बाद में वापस यहीं गिरता है।।
No comments:
Post a Comment