साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदुः ।
प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतसः ॥ ३० ॥
प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतसः ॥ ३० ॥
जो मुझ परमेश्वर को मेरी पूर्ण चेतना में रहकर मुझे जगत का, देवताओं का तथा समस्त यज्ञविधियों का नियामक जानते हैं, वे अपनी मृत्यु के समय भी मुझ भगवान को जान और समझ सकते हैं।
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जो मनुष्य यह जानता है कि
मैं ही हूँ इस जगत का कर्त्ता।
सारे देवता हैं मेरे नियंत्रण में
मैं ही सारे यज्ञों का भोक्ता।।
इस ज्ञान से अभिभूत मनुष्य
सदा मेरा ही चिंतन करता है।
ऐसा व्यक्ति अंत समय में भी
मुझे जानता और समझता है।।
****** भगवद्ज्ञान नाम का सातवाँ अध्याय सम्पूर्ण हुआ*******
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