अधियज्ञः कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन ।
प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभिः ॥ २ ॥
प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभिः ॥ २ ॥
हे मधुसूदन! यज्ञ का स्वामी कौन है और वह शरीर में कैसे रहता है? और मृत्यु के समय भक्ति में लगे रहने वाले आपको कैसे जान पाते हैं?
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हे मधुसूदन! मुझे बताए कि
कौन यज्ञ का स्वामी होता है?
यह भी मुझे समझाए प्रभु कि
कैसे वह इस शरीर में रहता है?
अंतिम क्षण कैसी होता उनका
अंतिम क्षण कैसी होता उनका
जो आपकी भक्ति में होते हैं?
कैसे ऐसे आत्म-संयमी मनुष्य
आत्म समय में आपको जानते हैं?
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