Tuesday, December 13, 2016

अध्याय-8, श्लोक-3

श्रीभगवानुवाच
अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते ।
भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञितः ॥ ३ ॥
भगवान ने कहा -अविनाशी और दिव्य जीव ब्रह्म कहलाता है और उसका नित्य स्वभाव अध्यात्म या आत्म कहलाता है। जीवों के भौतिक शरीर से सम्बंधित गतिविधि कर्म या सकाम कर्म कहलाती है।
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भगवान ने बताया कि दिव्य और 
अविनाशी जीव ब्रह्म कहलाता है।
और उसका सहज स्थिर स्वभाव 
अध्यात्म के नाम से जाना जाता है।।

जीव अपने भौतिक शरीर के लिए 
जितने भी अच्छे-बुरे कार्य करते हैं।
उनके द्वारा किए गए इन कार्यों को 
शास्त्र सकाम कर्म का नाम देते हैं।।

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